बजट 2022 : सस्ते डीजल, उर्वरक के साथ किसानाें काे अाैर भी कई उम्मीदें
कृषि कानून काे लेकर किसानाें के लंबे समय तक दिल्ली में पड़ाव के बाद अाखिर केंद्र सरकार ने तीनाें बिल वापस ले लिए। लेकिन अब अाम बजट काे लेकर किसान केंद्र सरकार की अाेर उम्मीद लगाकर बैठा है। किसान चाहते हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण डीजल के दाम कम करें। साथ ही डीएपी-यूरिया जैसे उर्वरक और पेस्टीसाइड भी सस्ते हाे जाएं। केंद्र सरकार 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए आम बजट पेश करेगी।
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किसान कहते हैं बजट में हम सरकार से उम्मीद करते हैं कि किसान को उसकी फसलों के दाम ठीक मिले। दूसरी चीजों में महंगाई बढ़ती जा रही है। सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि खेती की लागत कम हो। इनपुट कास्ट घटे। सस्ता डीजल, उर्वरक और पेस्टीसाइड की कीमतों में कटौती की उम्मीद यूपी, महाराष्ट्र, पंजाब हो या बिहार, बजट को लेकर सभी राज्यों के किसानों की पहली मांग रही कि डीजल-उर्वरक के रेट कम की जाए, फसलों के रेट सही मिले। बजट को लेकर जब किसानों से बात की गई ताे अधिकांश का यही जवाब था। कई किसान बिजली के बिलाें काे लेकर भी परेशान हैं। उनके अनुसार सरकार डीजल से टैक्स हटाए और बिजली सस्ती करे। साल 2021-22 के बजट में सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए 1.48 लाख करोड़ का बजट आवंटित किया था। पिछले बजट में सरकार के मुताबिक उनका जोर बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर था। एक लाख करोड़ रुपए का एग्री इंफ्रा फंड की भी घोषणा हुई थी। इस दौरान उर्वरक सब्सिडी 79530 करोड़ रुपए थी। इस दौरान कृषि ऋण के लिए 16.5 लाख करोड़ निर्धारित किए गए थे। इस वर्ष कृषि ऋण बजट फिर बढ़ने का अनुमान है।
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कृषि ऋण का सिर्फ किसान के लिए हो इस्तेमाल
विशेषज्ञाें के अनुसार कृषि क्षेत्र के लिए बजट मंे से दूसरे सेक्टर को अलग रखा जाए। हर साल कृषि ऋण में करोड़ों रुपए का इंतजाम हाेता है, लेकिन उसका बड़ा हिस्सा फूड प्रोसेसिंग सेक्टर, कोल्ड स्टोरेज और कृषि से जुड़े दूसरे सेक्टर को चला जाता है। कोई 25 करोड़ कोई 50 करोड़ का लोन ले जाता है। ऐसे में बैंकों का प्राथमिक सेक्टर का कोटा पूरा हो जाता है, लेकिन आम किसानों को फायदा नहीं मिल पाता। बैंकों के लिए प्राथमिक सेक्टर का जो 15-18 फीसदी लोन देने का कोटा होता है, उसमें केवल किसान को ही शामिल किया जाए।
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वेयर हाउस पर रखे अनाज पर अासानी से मिले लोन
विशेषज्ञाें के अनुसार वेयरहाउस में रखे अनाज पर लोन की सुविधा अासान हाेनी चाहिए। भारत में ज्यादातर किसान लोन लेकर खेती करते हैं। फसल काटने के बाद भुगतान के लिए वो किसी भी कीमत में फसल बेच देते हैं। सरकार की जो योजना है, जिसमें वेयर हाउस में रखने अनाज की कीमत के 80 फीसदी के बराबर बैंक लोन मिलता है, उसे दुरुस्त करना चाहिए। देश में 2007 से वेयरहाउस एक्ट लागू है और 2010 से वेयरहाउसिंग डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी अथॉरिटी काम कर रही है। लेकिन अभी तक महज 3000 से भी कम वेयरहाउस हैं, जिनकी रसीद पर बैंक लोन देती है। अगर लोन सही तरीके से मिलने लगा तो वो किसान औने-पौने कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर नहीं होगा।
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फसल की मिले सही लागत
किसान उनकी फसल का उचित मूल्य चाहते हैं। किसान बताते हैं कि खेती में सबसे ज्यादा खर्चा डीजल पर हाेता है, एेसे में कम रेट में डीजल मिलना चाहिए। सरकार या तो डीजल के रेट घटाए या फिर सस्ती दरों पर ट्यूबवेल से सिंचाई की व्यवस्था करे। अगर लागत घटती है तो किसान का हिसाब ठीक बैठ जाएगा। इसके अलावा सरकार ने 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य और 2 फसलों का एफआरपी (उचित और लाभकारी मूल्य) घोषित किया है। लेकिन खुद सरकारी आंकड़े और कई रिपोर्ट बताती रही हैं कि किसानों की एक बड़ी आबादी एमएसपी के फायदे से दूर है। बाजार में किसान की उपज कम कीमत में बिकती है। इसलिए किसान हमेशा एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग करते रहे हैं या फिर पीएम किसान निधि काे बढ़ाने की मांग करते हैं।