ड्राई रूट रोट बीमारी से बर्बाद हो रही चने की फसल
तेजी से बदल रहे मौसम और जलवायु परिवर्तन का असर चने की फसल पर भी, मिट्टी से जुड़ी बीमारियों का भी प्रकोप
देश में इन दिनों चने की फसल पकने की ओर है, लेकिन किसान अभी इस फसल में लग रही नए रोग से परेशान हैं। इस बीमारी का नाम है शुष्क जड़ सड़न (dry root rot)। वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु में बदलाव के चलते चने के पौधों की जड़ सड़न जैसी मिट्टी जनित बीमारियों के होने की संभावना बढ़ जाती है। पिछले कुछ सालों में चने की फसल में शुष्क जड़ सड़न बीमारी का प्रकोप भी बढ़ा है। इसमें चने की जड़ और धड़ को नुकसान पहुंचता है। शुष्क जड़ सड़न रोग से चने के पौधे कमजोर हो जाते हैं, पत्तियों का हरा रंग फीका पड़ जाता है। पौधे की ग्रोथ रुक जाती है और देखते ही देखते तना मर जाता है। अगर ज्यादा मात्रा में जड़ को नुकसान होता है, तो पौधे की पत्तियां अचानक मुर्झाने के बाद सूख जाती है।
क्लाइमेट में बदलाव और मिट्टी में नमी सबसे बड़ी वजह
क्लाइमेट मंे बदलाव के चलते तापमान बढ़ रहा है और मिट्टी में नमी कम हो रही है। इसके साथ ही फसलों में कई तरह की नई बीमारियां भी आने लगी है। फसल में फूल और फल लगते हैं तो उस समय अगर तापमान बढ़ता और मिट्टी में नमी कम हो जाती है तो इस रोग से चने में काफी नुकसान होने लगता है। इससे पौधे हफ्ते 10 दिन में सूखने लग जाते हैं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में चने की खेती ज्यादा होती है। इन दिनों इन सभी प्रदेशों में यह बीमारी देखने को मिल रही है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार इस बीमारी से इन राज्यों में फसल का कुल 5 से 35 प्रतिशत हिस्सा संक्रमित होता है। जब तापमान 30 डिग्री से ज्यादा और नमी 60 प्रतिशत से कम हो तो यह बीमारी ज्यादा बढ़ती है। चने में इस रोग का पता लगाने की शुरूआत वैज्ञानिकों ने साल 2016-17 में की थी, जब उन्हें पता चला कि चने में नई बीमारी लग रही है।
विश्व में 61 प्रतिशत से ज्यादा भारत में चने का उत्पादन
विश्व में चने की खेती लगभग 14.56 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में होती है आैर 14.78 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन होता है। भारत की बात करें तो यहां चने की खेती लगभग 9.54 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में होती है, जो कि विश्व का कुल क्षेत्रफल का 61.23% है। वैज्ञानिक अब रोग की रोकथाम के लिए रिसर्च कर रहे हैं, ताकि किसान अपनी फसल को बचा सके। हालांकि वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि खेत में ज्यादा खरपतवार न होने दें और सिंचाई करके भी कुछ नुकसान से बचा जा सकता है।