कौनसा मौसम किस फसल के लिए अनुकूल

हर महीने फसलों का अलग महत्व, आप भी जानिए कौनसा मौसम किस फसल के लिए अनुकूल

खेती में आए दिन नए नए प्रयोग हो रहे हैं। नई तकनीकें आ रही हैं और उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि औजार भी नई तकनीकों के साथ बाजार में उपलब्ध है। सरकारें भी किसानों के लिए प्रयास करती हैं, लेकिन इन सबके बीच किसानों को भी चाहिए कि वे महीने के हिसाब से फसलों का चयन कर बुवाई करें, ताकि प्रत्येक फसल की समय पर बुवाई का कार्य पूरा हो सके। समय पर फसलों की बुवाई करने से ज्यादा उत्पादन प्राप्त होता है। जबकि देरी से बुवाई में देरी करने पर फसल उत्पादन में कमी आ जाती है। भारत में सीजन के अनुसार फसलों को रबी, खरीफ और जायद तीन भागों में बांटा गया है और इनकी बुवाई का समय भी अलग-अलग निर्धारित किया हुआ है और उसी के अनुसार इसकी बुवाई की जाती है।

  • खरीफ फसलों की बुवाई जून से जुलाई तक की जाती है।
  • रबी फसलों की बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक की जाती है।

– जायद फसलों की बुवाई फरवरी से मार्च तक की जाती है।

खरीफ सीजन की फसलें और उनकी बुवाई का सही समय
सामान्यत: खरीफ की फसलों की बुवाई जून-जुलाई में की जाती है और अक्टूबर के आसपास काटी जाती है। इन फसलों को बोते समय अधिक तापमान एवं आर्द्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। खरीफ की प्रमुख फसलों में धान (चावल), मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, मूंगफली, गन्ना, सोयाबीन, उड़द, तुअर आदि शामिल हैं।

  1. धान (चावल) की बुवाई
    धान की बुवाई का सही समय जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह तक का माना जाता है। लेकिन धान की बुवाई वर्षा आरंभ होते ही शुरू कर देना अच्छा रहता है। देश के कई भागों में मॉनसून आने के 10 से 12 दिन पूर्व यानी मध्य जून तक बुवाई कर दी जाती है।
  2. मक्का की बुवाई
    मक्का की मुख्य फसल (खरीफ) के लिए बुवाई का सही समय मई-जून तक होता है। सर्दी में मक्का की बुवाई अक्टूबर अंत से नवंबर तक कर सकते है। वहीं बसंत ऋतु में मक्का की बुआई के लिए सही समय जनवरी के तीसरे सप्ताह में मध्य फरवरी तक होता है।
  3. ज्वार की बुवाई
    उत्तर भारत में ज्वार की खेती खरीफ सीजन में की जाती है। इसकी बुवाई के लिए अप्रैल-जुलाई का महीना सबसे उपयुक्त होता है। सिंचित इलाकों में ज्वार की फसल 20 मार्च से 10 जुलाई तक बुवाई कर देनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में सिंचाई उपलब्ध नहीं है वहां मॉनसून में शुरू होते ही इसकी बुवाई कर देनी चाहिए।
  4. बाजरा की बुवाई
    बारानी क्षेत्रों में मानसून की पहली बारिश के साथ ही बाजरे की बुवाई कर देनी चाहिए। उत्तरी भारत में बाजरे की बुवाई के लिए जुलाई का प्रथम पखवाड़ा सर्वोत्तम है। ध्यान रहे 25 जुलाई के बाद बुवाई करने से 40 से 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रतिदिन पैदावार में नुकसान होता है। इसलिए इसकी सही समय पर बुवाई करना ही फायदेमंद रहता है।
  5. मूंग की बुवाई
    खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह है एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिए। बोनी में देरी होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियां कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है इससे इसकी उपज प्रभावित होती है।
  6. मूंगफली की बुवाई
    बारिश आने से पहले ही मूंगफली की बुआई कर देनी चाहिए। इसकी बुआई का 1 से 15 जून के बीच सही माना गया है। वहीं 15 जून के बाद बुआई करने से 35 किलो प्रति हैक्टेयर प्रतिदिन कम उत्पादन होने की आशंका रहती है। इसलिए बुआई तय समय पर ही करना उचित रहता है।
  7. सोयाबीन की बुवाई
    सोयाबीन फसल के लिए बीज की बुवाई का समय 15 जून से 15 जुलाई तक माना जाता है। अगर बुवाई करने में विलंब हो रहा हो (जुलाई के प्रथम सप्ताह के बाद ) तो बोनी की बीज दर 5- 10 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए।
  8. उड़द की बुवाई
    इसकी बुवाई फरवरी से अगस्त तक की जा सकती है। खरीफ मौसम में खेती करने के लिए बीज की बुवाई जून-जुलाई में करें। वहीं जायद मौसम में खेती करना चाहते हैं तो बीज की बुवाई फरवरी-मार्च में कर सकते हैं।
  9. तुअर (अरहर) की बुवाई
    देसी अरहर की बुवाई पहली बारिश में जून के आखिरी सप्ताह या जुलाई के पहले सप्ताह में कर सकते हैं। अगर इसकी नर्सरी लगाकर बुवाई करनी है तो अप्रैल या मई में इसकी नर्सरी लगाएं और जुलाई में इसकी रोपाई करें। नर्सरी से रोपाई करने पर पैदावार में एक से डेढ़ क्विंटल तक बढ़ोतरी होती है।
  10. गन्ना की बुवाई

उत्तर भारत में मुख्यत: फरवरी-मार्च में गन्ने की बसंत कालीन बुवाई की जाती है। गन्ने की अधिक पैदावार लेने के लिए सर्वोत्तम समय अक्टूबर- नवंबर है। बसंत कालीन गन्ना 15 फरवरी-मार्च में लगाना चाहिए। उत्तर भारत में गन्ने की विलंब से बुवाई का अप्रैल से 16 मई तक की जा सकती है।

रबी सीजन की फसलें और उनकी बुवाई का सही समय


रबी की फसल सामान्यत: अक्टूबर-नवंबर के महीनों में बोई जाती है। इन फसलों की बुआई के समय कम तापमान तथा पकते समय खुश्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। गेहूं, जौ, चना, मसूर, अलसी व सरसों रबी की प्रमुख फसलें है

  1. गेहूं की बुवाई
    कृषि विभाग के मुताबिक फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए उनका सही समय पर बोना आवश्यक है। गेहूं की फसल बोने के लिए 1 से 20 नवंबर तक श्रेष्ठ समय है। जबकि पछेती किस्मों को 25 दिसंबर तक बोया जा सकता है।
  2. जौ की बुवाई
    जौ की बुवाई का सही समय नवंबर के प्रथम सप्ताह से आखिरी सप्ताह तक होता है। लेकिन देरी होने पर इसकी बुवाई मध्य दिसंबर तक की जा सकती है।
  3. चने की बुवाई
    असिचिंत क्षेत्रों में चने की बुवाई अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में जानी चाहिए। वहीं सिंचित क्षेत्रों मे इसकी बुवाई 30 अक्टूबर तक की जा सकती है।। फसल से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत में प्रति इकाई पौधों की उचित संख्या होना बहुत आवश्यक है।
  4. मसूर की बुवाई
    मसूर की बुवाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से नवंबर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। सिंचित क्षेत्रों में इसकी बुवाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक की जा सकती है। मध्य नवंबर के बाद बुवाई करने पर उपज कम मिलती है। इसलिए इसकी बुवाई उचित समय पर कर देनी चाहिए।
  5. सरसों की बुवाई
    सरसों की बारानी क्षेत्र में बुवाई 15 सितंबर से 15 अक्टूबर तक की जाती है। जबकि सिंचित क्षेत्रों में सरसों की बुवाई 10 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक की जा सकती है।
  6. अलसी की बुवाई
    असिंचित क्षेत्रों में अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में तथा सिचिंत क्षेत्रों में नवंबर के प्रथम पखवाड़े में बुवाई करनी चाहिए। जल्दी बोनी करने पर अलसी की फसल को फली मक्खी एवं पाउडरी मिल्डयू आदि से बचाया जा सकता है।

जायद की प्रमुख फसलें और बुवाई
वर्ष की दो मुख्य फसलों के बीच में अथवा किसी मुख्य फसल के पहले अपेक्षाकृत लघु समय में उत्पन्न की जाने वाली फसल को जायद/अंतवर्ती फसल कहते हैं। स्थिति के अनुसार मुख्य फसल के खराब हो जाने पर उसके स्थान पर उगाई जाने वाली फसल अथवा किसी मुख्य फसल के बीच-बीच में उगाई जाने वाली फसल को भी जायद या अंतर्वर्ती फसल कहा जाता है। इसकेे तहत कई फसलों की खेती की जाती है। जब खेत खाली पड़े हो और सिंचाई की अच्छी व्यवस्था हो वहां जायद खेती करना फायदेमंद रहता है। जायद सीजन में जायद मूंग, उड़द, सूरजमुखी, मूंगफली, मक्का, चना, हरा चारा, कपास, जूट आदि की खेती की जा सकती है।

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